Site icon Real Reporter News

प्रजापति

पांच सौ साल पहले उत्तर भारत की तराई में एक बहुत ही छोटे से राज्य में एक महान राजा राज्य करता था, उसका नाम था उल्का भील, उसे सब सम्मान से प्रजापति कहते थे। उसके शासनकाल के चर्चे सदियों तक होते रहे । वह इतना धनवान था कि उसके अगल बगल के राजाओं में उसके जैसा बनने की होड़ मची रहती थी लेकिन उसके जैसा बनना बहुत कठिन था यही कारण था कि ज्यादातर राजपरिवार उससे इर्ष्या रखते थे। वह युवा था और अभी तक उसकी शादी भी नहीं हुई थी। उसके राज प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उसके राज्य में एक मुनादी सदैव हुआ करती थी कि प्रजा में किसी भी महिला पुरुष को कोई कारोबार आदि करना हो, तो वह किसी भी तरह से किसी अन्य से कर्जा ना ले बल्कि सीधे राजा के दरबार में आये अपनी बात सोच समझकर रखे और जितनी आवश्यकता हो उतना धन ले जाए। फिर धीरे धीरे लगान के रूप में अपने लाभ में से एक हिस्सा वह राजपरिवार के खजाने को वापिस लौटा दे।

यहां तक कि एक और सहुलियत थी कि यदि कोई आपदा या परेशानी के चलते व्यवसाय में लाभ ना हो तो वह कर्ज मुक्त भी हो सकता है साथ ही यदि कोई दैवीय आपदा आदि के चलते नुकसान हुआ हो तो उसे एक बार और राजघराने की ओर से मदद मिलेगी तथा दूबारा वह अपना कार्य शुरू कर सकता है। ऐसे प्रजा में बहुत से लोग सम्पन्न व खुशहाल होने लगे, साथ ही राजा की बहुत प्रसन्शा होने लगी। लेकिन उस समय की यह एक बड़ी समस्या भी थी कि अक्सर राजघरानों में षड्यंत्र भी रचा जाता था, राज पाट हथियाने के लिए कई बार अपने ही सगे भाई या परिजन अपनों को ही क्षति पहुंचाया करते थे
उल्का भील के परिजनों में एक उसके ताऊ का बेटा हुआ करता था, जिसका नाम मल्खा भील था, जिसने अपने पिता के नाकारेपन की वजह से इस राज्य की सत्ता नहीं पाई थी, वह हमेशा इस फिराक में रहता था कि कैसे उल्का भील पर कोई आरोप लगा कर उसे बदनाम तथा सत्ता से बेदखल कर दिया जाए। ऐसे में उसने एक चाल चली कि क्यों ना उल्का को उल्लू बनाने का कार्य किया जाए। जिससे प्रजा में उसकी निंदा शुरू हो जाए। मल्खा ने अपने चाल को चलने के लिए, चोरों के एक गिरोह से सम्पर्क किया तथा उन्हें उल्का भील के दरबार में व्यापार फरियादी बनकर जाने के लिए कहा और उन्हें अतिरिक्त धन का लालच भी दिया।

वह चोर दिन हीन बनकर उल्का भील के दरबार में अपनी बात रख रहे थे, उन्होंने अपने कारोबार को बढ़ाने और मेहनत करने की झूठी कहानी सुनाकर उल्का के राजकोष से सौ अशर्फियां पा लिया और हंसी खुशी वहां से चल पड़े। इतना धन उन नालायकों को पहली बार मिला था अतः वे सबसे पहले मदिरालय पहुंचे वहां जा कर उन्होंने खूब शराब पी। साथ ही उस मदिरालय में उन्होंने अच्छी खासी डिंग हांकना भी शुरू किया, कि कैसे वे राजा उल्का भील को उल्लू बना दिए और राजकोष से सैकड़ों अशर्फियां जीत लिया। चूंकि मल्खा भील जो कि उल्का भील के ताऊ का बेटा था उससे यही तय हुआ था चोरों का कि तुम्हें राजा को बदनाम करना है जिसके बदले में वह उन्हें उतने रूपये और देगा जितना कि वह राज दरबार से पाये होंगे।

यह मदिरालय में उठी उल्लू वाली चर्चा अब राज दरबार तक भी पहुंची, उल्का भील को मंत्रियों आदि के माध्यम से बताया गया कि उसकी निंदा शुरू हो गई है। वह मुस्कुराया और कहा कि इस बात से बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है वह अपनी प्रसन्शा भी तो नहीं सुनना चाहता है फिर भी होती है, वैसे ही निंदा भी नहीं सुनना चाहता है फिर भी होगी और सुनना ही नहीं उसे सहना भी पड़ेगा। उल्का भील ने अपने महान पिता से बहुत से गुण सीखे थे जिनमें एक यह भी था कि आप किसी की ग़लती की सजा के बजाए उसे सम्भलने का एक अवसर देकर देखो हो सकता है समाज या देश में एक और भला आदमी बढ़ जाए लेकिन यह गलती करने पर होना चाहिए ना कि अपराध। उल्का भील अपने पिता की इन बातों को याद किया तो उसे लगा कि यह छोटी सी गलती ही तो है, चलो इन्हें सुधार दिया जाए। वह चाहता तो, उन चारो चोरों को गिरफ्तार करा कर उनपर अभियोग चला देता लेकिन उसने उन्हें एक अवसर दिया।

और उसी दिन उनके पास अपने एक व्यापारी मित्र को कुछ अखरोट आदि लेकर भेजा, जिसका नाम सहलू था, वह कश्मीर के घाटी से शुद्ध अखरोट लाकर तराई क्षेत्र ही नहीं अन्य राज्य के व्यापारियों को भी अखरोट अंजीर आदि बेचता था । सहलू ने चोरों से सम्पर्क किया और कहा कि यदि यह चार बोरी अखरोट वे अस्सी अशर्फियों में खरीद लें तो वह बाजार में सौ अशर्फियों में बहुत आसानी से बिक जाएगा जिससे उनको बीस अशर्फियों का शुद्ध लाभ हो जाएगा। चोरों को पहले तो यह बात पसंद नहीं आयी लेकिन व्यापारी ने उनको बहुत समझाया, व्यापार का लाभ बताया, तो उन्हें लगा कि उनके पास तो अतिरिक्त अशर्फियां हैं ही चलो आजमा कर देखा जाए, इस तरह वे उस व्यापारी सहलू की सलाह मानते हुए अस्सी अशर्फियों का चार बोरी अखरोट खरीदा और उसे ले जाकर बजार में बेच दिया, सच में उनको अब सौ अशर्फियां मिल चुकी थीं, अब क्या था उन्होंने अपने पास रखी हुई मल्खा भील से मिली हुई हराम की जो सौ अशर्फियां थीं उसे भी अखरोट खरीदारी में लगा दिया और इस बार उन्हें बड़ा लाभ भी हुआ।

वे बहुत खुश हुए, थोड़े ही दिनों में वे राजकोष से पाई हुई अशर्फियों को ससम्मान चुक्ता कर दिए और अब उनके पास अपना सम्मान से कमाया हुआ धन ही काफी था, एक दिन उन्होंने अपने व्यापारी मित्र सहलू को खुश होकर दावत दिया , वे चारो चोर जो अब व्यापारी बन चुके थे वे और उनके परिवार के लोग भी बहुत खुश थे । वे आज सहलू व्यापारी से अपने चोर होने के राज को साझा कर अपने दिल का बोझ हल्का करना चाहते थे। तब सहलू व्यापारी ने उन्हें बताया कि वह सब जानता है। चारो चोर चौंक गये, जब उन्हें ये पता चला कि राजाज्ञा पर सहलू उनके पास आया था तो वे डर गये लेकिन सहलू ने उन्हें समझाया कि राजा उल्का भील कितने महान हैं, यदि वे चाहते तो तुम सबको दंड देते लेकिन उन्होंने तुम सबके जीवन को बेहतर बनाने की योजना बनाई। अतः वे सही मायनों में प्रजापति हैं ! वे राजा उल्का भील की जय जयकार करने लगे । अपने गलती की क्षमा सार्वजनिक तौर पर मांगे। अब उस राज्य में चार और अच्छे लोग बढ़ गये थे, यही उल्का भील की कमाई थी , उसका आनंद था, उसके लिए सच्चा सुख था। उल्का भील के ताऊ के बेटे मल्खा भील ने आगे क्या किया यह जानने के लिए आप सब हमारी वेबसाइट – www.realreporternews.in पर visit करते रहियेगा। जय जयकार जारी रहेगी ! Facebook Page – REAL Reporter News को भी Follow कर लीजिए। धन्यवाद!
साभार – अजय साहनी स्टार की लिखी कहानियों में से एक ।

Exit mobile version