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होली मंगलमय हो !

होली यूँ तो हर्ष उल्हास और विविध रंगों का त्यौहार है, जिसके आगमन की सुगन्ध और खयाल ही मन को सराबोर से करने लगते हैं लेकिन इसी होली यानी रंगों , पकवान , खान पान के त्यौहार को कुछ लोग बदरंग बनाने में भी गूरेज नहीं करते । आज रीयल रिपोर्टर न्यूज स्टार इसी मसले पर आपसे बात कर रहा है। जरा सोचिये एक उस होली को जो बचपन में आया करती थी , जब हम बच्चे बड़ी बेचैनी से माँ के हाथ की बनी गुझिया का इंतेजार किया करते थे और चाव से खाते थे । होली के एक दिन पहले जब गाँव के बाहर सिवान में होलिका जलायी जाती थी , बड़े लोग वहाँ पर कुछ अजीब सा कबीर गाते थे वह दृश्य आँखों के सामने कभी कभार जीवन्त हो उठता है।

अबके होली में और तब के होली में बड़ा फर्क आ गया है, होलिका की जल रही आग को दूसरे दिन सुबह हममे से ही कोई परिजन , खासकर पुरूष ही जाकर जौ की कुछ डंठलियाँ उखाड़कर उसमें से आग लाता था , चुल्ह पर खाना बनाने के लिये। सुबह से एक ओर रंग गूलाल की हुड़दंग , अल्हड़ रंग तो फिर दोपहर में खाकर सोना , शाम को नहा धो कर घर घर अबीर लगाने और बड़ों का आशिर्वाद लेने जाना। अब ये सब कहाँ रहा भला ।

अब तो चार दिन पहले से ही सब इस जुगाड़ में परेशान रहते हैं कि होली के दिन ड्राय डे रहेगा इसलिये पहले ही पीने खाने का इंतेजाम पुख्ता हो जाये। कुछ लोग तो ये भी मंसूबे बना चुके होते हैं कि किसको कहाँ – कहाँ रंगना है ! कुछ लोग तो इस जुगत में रहते हैं कि कहाँ – कहाँ जाना होगा , जहाँ पीना खाना हो सके , कुछ मौज लूटा जा सके । ये तो वे बातें रहीं जो कहीं न कहीं छोटी – मोटी उत्सुकता को , जिजिवित्सा को दर्शाती हैं लेकिन उन बातों को बहुत बुरा कहा जा सकता है जब इतने खुबसूरत त्यौहार की गरिमा , इतने स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ कुछ लोग सिर्फ इसलिये नहीं उठा पाते हैं कि वे नाक के ऊपर तक मदिरापान कर चुके रहते हैं , साथ ही चखना में सिर्फ मांसाहार को ही प्राथमिकता के आधार पर ढकेलते और ठूंसते चले जाते हैं ।

कुछ लोगों को तो सुबह से ही ऐसी मदमाती होली का सुरूर चढ़ जाता है कि उनकी शाम या फिर यूँ कहें कि रात किस हालात में गुजरती है उनको कुछ खबर ही नहीं होती है। कहीं गिरे पड़े , लोटते – पोटते , बड़बड़ाते – गरियाते बड़ी बदहाली में उनकी होली बितती है । पूरे साल पछतावा लिये कि यार इस बार बहुत ज्यादा हो गया था , दो तरह का आईटम टकरा गया है , मैं खाली पेट था न , इसलिये लग गया । वो दारू बहुत लो लेबल का था इसलिये चढ़ गया । जितने लोग उतने बहाने , कोई नहीं कहता कि मेरी गलती थी मैंने हऊहारी में , जो फ्री में मिला वो पी लिया या खा लिया , सिर्फ दूसरों पर दोषारोपण ही हमारी प्राथमिकता बन चुकी है।

अब बात करते हैं सबसे खतरनाक और घातक लोगों की जिन्होंने होली को बहुत ही घटिया , शर्मनाक और अपवित्र बनाने का काम किया है, जैसे कुछ अपराधिक प्रवृत्ति के वे लोग जो किसी की बेटी – बहु आदि को आकर्षित करने में असफल रहते हैं और इसी होली के दिन को उन महिलाओं से बदला लेने की गंदी सोच लिये उनको छेड़ने , बदनाम करने या उनके साथ जितनी भी गंदी हरकतें हो सके करने , यहाँ तक कि न सिर्फ अकेले बल्कि समूह में ये अभद्र कारनामें करने की फिराक में रहते हैं। जिसका परिणाम कई बार बहुत घातक और जानलेवा भी साबित होता है।

दरअसल उनकी हरकतों की जब हदें पार होती हैं तो कोई ना कोई बगावती बिगुल अथवा विरोधी सुर तो बजेंगे ही , जिसका ये असमाजिक तत्व बन चुके लोग भयानक प्रतिक्रिया भी देंगे ही जिसके फलस्वरूप परिस्थितियाँ बहुत ही भयावह हो जाती हैं , जहाँ रंग – गूलाल की फुहार उड़नी थी वहाँ पर रक्त धार भी बहते देखा गया है । बहुत कष्ट होता है जब लोग ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करते हैं , अपने नीजी स्वार्थों या प्रतिशोध की भावनाओं के चलते ऐसे परिवारों को भी तबाह कर देते हैं , जिनका कोई दोष नहीं होता है और ये आततायी लोग सब कुछ तबाहो बर्बाद कर देते हैं ।

जैसे मान लीजिये , कोई प्यारी सी , सुन्दर सी महिला कहीं पर अपने बच्चों के साथ किसी तरह रह रही है , जिसका पति या तो परदेश में है या फिर कहीं भी है लेकिन उसके साथ नहीं है , अब उसके वार्षिक देवरनुमा तमाम रढ़ूआ टाईप के दानवों को उसकी याद बहुत सतायेगी । सिर्फ होली खेलने के लिये बस । या फिर कोई लड़की जो बहुत सुन्दर है , कमसिन है , उसको चाहने वालों नहीं बल्कि उसके ऊपर वहसी निगाहें गड़ाने वालों को इस मौके की तलाश रहेगी कि कैसे उसे पा लें या मसल दें ।

यदि इन सारी हरकतों का कोई विरोध करने वाला उस परिवार में है और उसने इन दैत्यों को रोकने की कोशिश भर की तो ये दानव उसके जान के दुश्मन बन जायेंगे और फिर खूनी खेल खेलने से भी पीछे नहीं हटेंगे ये हवसी हत्यारे। बेवजह किसी के निर्दोष पिता की तो कहीं किसी के बेगुनाह भाई की बड़ी बेरहमी से हत्यायें कर दी जाती हैं । यह हर साल होता है , हर हाल में होता है , न जाने क्यूँ ??? यह पहलू बहुत दुखद है , किन्तु इस पर कोई कैसे विराम लगाये , यह युक्ति नहीं सूझती , आजकल होली को कुछ लोग अपने नशीले जीवन का शुभारम्भ भी मानते हैं , दरअसल ये इसी दिन से मदिरापान आदि की शुरूआत जो करते हैं । तो चलिये आपकी होली मंगलमय होगी हम ऐसी आशा करते हैं , आपके परिजनों को बच्चों को प्रभु अशुभ लोगों से , उनकी गंदी नजरों से बचायें , बाकी आप स्वयं स्वस्थ रहें , सजग और सावधान भी !

बाकी लड़ना सिद्धांत होना चाहिये मगर कब ?? यह अगले पोस्ट में प्रेषित करेंगे ॥ जय जयकार जारी रहेगी !

आपका दोस्त – अजय साहनी स्टार

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