मन बहुत आहत है, दिल में बड़ी चाहत है लेकिन क्या देने के काबिल हूं मैं अफसोस भरे दो लफ्जों या हौसलों के नरम गिलाफ के सिवाय, जबकि जानता हूं कि इन दोनों से ही आकाश गुप्ता के गम कम तो नहीं होंगे !
आखिर क्या सोचकर उसने मेरी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखा होगा ? किस जिज्ञासा ने उसे प्रेरित किया होगा कि ये अखबारों के कटिंग्स मुझे भेजने के पहले वो दो टूक बातें करके मुझसे अपना दुख साझा करना चाहा लेकिन जब मेरी उससे बात हो रही थी तो जो झिझक उसके जुबां पर थी वो अभी भी मेरे कानों में सांय सांय कुछ कह रही है। मैं तड़प रहा हूं, सिहर रहा हूं , इसलिए कि मैं कुछ कर क्यों नहीं पा रहा हूं ? आप लोग इस परिस्थिति को समझ पा रहे हैं क्या ? सोचिए ना , कि कैसे कोई जब इतनी बड़ी बिमारी का शिकार हो गया हो और वह समाज से, देश से, सरकार से मदद मांग रहा हो, जीने की लालसा लिए, भीख मांग रहा हो और किसी को कुछ सुनाई ही ना दे रहा हो !

तो हर दिन उस पर क्या बीत रही होगी ? एक सौ चालीस करोड़ की आबादी वाले इस देश में, जहां एक जागरूकता का अभियान (साईबर अपराधी हो सकते हैं) वाला प्रसारण सरकार के द्वारा चलाने के लिए कितना उम्दा संसाधन चुन लिया गया है कि हर किसी का, चाहे कितना भी जरूरी कार्य क्यों ना नुकसान हो जाए पर हर बार मोबाईल की घंटी बजने के पहले जैसे घंटों समझाया बुझाया, जागरूक, सचेत किया जा रहा है, क्या ठीक वैसे ही आकाश जैसे बच्चों के लिए एक दिन ऐसी सूचना चलाकर मात्र एक रूपए की मदद नहीं मांगी जा सकती है सरकार के द्वारा इस देश से क्या ?? जो सरकार के ही कोष में आये और, वो आकाश के इलाज में खर्च करने के उपरांत कुछ बच जाए तो किसी और पीड़ित के ईलाज में लगा दिया जाए, जो ऐसे लाईलाज समस्याओं से जूझ रहे बच्चे हैं उनके लिए ? और कोई रास्ता मुझे नहीं सूझ रहा , आप सब से निवेदन है कि कुछ कीजिए। कोई फाउंडेशन, कोई ट्रस्ट यदि कोई हो, जिसके द्वारा कुछ क्राउड फंडिंग हो सके, कोई भी रास्ता तरकीब तो जरूर सुझाएं। जिससे कि जीने की सही सार्थकता सिद्ध हो सके। जय जयकार जारी रहेगी !

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