शिवानंद तिवारी तेजस्वी विवाद
शिवानंद तिवारी तेजस्वी विवाद शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी यादव को दी नसीहत तो सुनील पर क्यों भड़के? ‘अवसरवादी बाबा’ के विलाप पर सियासी घमासान। पूरा मामला और प्रतिक्रिया यहाँ जानें।
शिवानंद तिवारी तेजस्वी विवाद: अवसरवादियों सावधान! सुनील झा ने खोला राजद के पिटारे!

राजद में आंतरिक कलह तेज हो गया है। पूर्व सांसद सुनील कुमार झा ने वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी को ‘अवसरवादी बाबा’ कहकर जमकर ललकारा। तिवारी ने तेजस्वी यादव को चुनावी हार पर नसीहत देते ही यह तीखा हमला झेला। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के बाद पार्टी में गुटबाजी चरम पर है।
विवाद की पूरी कहानी
सुनील कुमार झा ने सोशल मीडिया पर आग उगलते हुए शिवानंद तिवारी को निशाना बनाया। उन्होंने तिवारी को ‘अवसरवादी बाबा’ कहकर उनकी सियासी यात्रा पर सवाल उठाए। झा का गुस्सा तब भड़का जब तिवारी ने तेजस्वी को सलाह दी कि विपक्ष में रहते हुए ज्यादा आक्रामक रुख अपनाएं। तिवारी ने कहा कि महागठबंधन की हार में तेजस्वी की रणनीति कमजोर रही। इस बयान को सुनील ने पार्टी के युवा नेता पर हमला माना। यह घटना राजद के आंतरिक संवाद को सार्वजनिक कलह में बदल रही है।
सुनील झा का गुस्सा और पृष्ठभूमि
Sunil कुमार झा राजद के कटिहार से पूर्व सांसद हैं। वे लालू प्रसाद के पुराने साथी रहे, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी लाइन से असंतुष्ट दिखे। झा ने तिवारी पर आरोप लगाया कि वे हमेशा सत्ता के साथ चले जाते हैं – जनता दल से राजद तक। ‘बाबा’ शब्द से उन्होंने तिवारी की धार्मिक छवि पर कटाक्ष किया। झा का मानना है कि तिवारी जैसे पुराने नेता तेजस्वी को सबक सिखाने के हकदार नहीं। यह बयानबाजी बिहार की ग्रामीण राजनीति में लोकप्रिय हो रही, जहां स्थानीय नेता अपनी बात जोरदार तरीके से रखते हैं।
शिवानंद तिवारी की सियासी यात्रा
शिवानंद तिवारी राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे लालू प्रसाद के सबसे करीबी नेताओं में शुमार। 1990 के दशक में जद से राजद में आए तिवारी जेल भी गए। चारा घोटाले में लालू के साथ खड़े रहे। हाल ही में उन्होंने तेजस्वी को पत्र लिखकर सलाह दी। तिवारी का कहना था कि नीतीश कुमार और भाजपा के खिलाफ ज्यादा मुखर होना चाहिए। सुनील के हमले से उनकी छवि पर सवाल उठे। तिवारी ने अभी चुप्पी साधी है, लेकिन पार्टी सर्कल में हलचल है।
तेजस्वी यादव का मौन और चुनौतियां
तेजस्वी यादव ने इस विवाद पर कोई टिप्पणी नहीं की। वे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। 2025 चुनाव में राजद को 70 सीटें मिलीं, लेकिन महागठबंधन हार गया। तेजस्वी पर रणनीति बदलने का दबाव है। सुनील का बयान उनके समर्थकों को मजबूत कर सकता है। लालू प्रसाद की सेहत खराब होने से तेजस्वी को पार्टी संभालनी पड़ रही। यह कलह 2026 के उपचुनावों को प्रभावित करेगी।
बिहार चुनाव 2025 का बैकग्राउंड
बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर 2025 में हुए। NDA ने 250 में से 170 सीटें जीतीं। नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा मजबूत रहीं। राजद-कांग्रेस गठबंधन को झटका लगा। तेजस्वी की युवा अपील काम आई, लेकिन जातिगत समीकरण बिगड़े। सुनील झा जैसे नेता पार्टी में बदलाव की मांग कर रहे। यह विवाद राजद को और कमजोर कर सकता है।
राजद में गुटबाजी का इतिहास
राजद हमेशा से गुटों में बंटा रहा। लालू के दौर में भी आंतरिक कलह थी। तेजस्वी के नेतृत्व में युवा नेता उभरे, लेकिन पुराने चेहरे असंतुष्ट। सुनील का तिवारी पर हमला इसी टकराव का हिस्सा। पार्टी अनुशासन समिति सक्रिय हो सकती है। लालू परिवार पर दबाव बढ़ा। विपक्ष में एकजुट रहना चुनौती।
राजनीतिक प्रभाव और प्रतिक्रियाएं
- यह बयानबाजी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।
- भाजपा और जदयू ने इसे मजाक उड़ाया।
- राजद कार्यकर्ता दो फाड़। सुनील झा को पार्टी से निष्कासन की आशंका।
- तेजस्वी को नेताओं को संभालना होगा।
- बिहार में विपक्ष की कमजोरी NDA को फायदा देगी।
भविष्य की राह
- राजद को एकजुट होने की जरूरत। सुनील का बयान पार्टी सुधार का संकेत।
- तिवारी जैसे नेताओं को पीछे हटना पड़ सकता।
- तेजस्वी 2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी करेंगे।
- यह घटना बिहार राजनीति को नया मोड़ देगी।
- भ्रष्टाचार और जातिवाद के मुद्दे फिर उभरेंगे।
निष्कर्ष: सियासत का नया अध्याय
सुनील का तीखा प्रहार राजद को हिला रहा। ‘अवसरवादी बाबा’ टैग तिवारी के लिए मुसीबत। तेजस्वी के लिए सबक भरा।
