Story - Ajay Sahani Star

उत्तर भारत में एक नदी के किनारे एक गांव हुआ करता था माधवपुर , जहां पर नदी का किनारा पकड़े हुए एक कतार में बहुत से बबूल के पेड़ हुआ करते थे जिनपर शाम ढ़लते ही बहुत से बगुले डेरा जमा लिया करते थे। दूर से देखने पर यूं लगता था मानो किसी ने पेड़ों पर सफेद चादर सूखाने डाल रखी हो। उसी माधवपुर में बिरजू मल्लाह नाम के एक अस्सी साल के बुजुर्ग नाविक भी रहा करते थे, जिनका शरीर अब पूरी तरह से कमजोर हो चला था, चमड़ियां सिकुड़ कर झूल गई थीं।

वह नदी के किनारे ही अपनी एक झोंपड़ी डाल रखे थे, जबकि उनका गांव में पुराना घर भी था जहां उनकी बहू अपने बच्चों के साथ रहती थी और उनके लिए खाना वहीं नदी पर ही भेजवा दिया करती थी। बिरजू का एक बेटा था, और चार बेटियां थीं। सबकी शादी ब्याह कर के अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त बिरजू नदी किनारे ज्यादातर समय अपनी छोटी सी नाव पर ही बिताया करते थे। नदी के किनारे थोड़ी बहुत खेती करने योग्य जमीन थी जो कटान में चली गई थी। माधवपुर से कुछ ही दूरी पर एक पूल बन जाने के कारण लोग बाग अब बिरजू मल्लाह की नाव का भी इस्तेमाल नहीं करते थे जबकि एक समय ऐसा भी था जब, यहां घाट हुआ करता था बड़ी गहमा गहमी भी होती थी।

बिरजू का बेटा, मजदूरी करने रोज शहर जाता था वह भी अब उस पूल से ही चला जाता था इसलिए पिता से उसकी मुलाकात हुए महीनों बीत जाते थे। बिरजू की बेटियां भी अपनी अपनी दुनियां में व्यस्त हो चुकी थीं। एक रोज जब बिरजू की एक पोती उनके लिए खाना लेकर आई तो, बिरजू ने उसे अपने पास बैठने के लिए बोला, और कहा, ” जब तुम बड़ी हो जाना और कभी अपने माता पिता से दूर कहीं और चले जाना , तो बेटा थोड़े थोड़े समय पर अपने माता पिता से मिलने के लिए जरूर आते रहना, उन्हें भूल मत जाना।

उस छोटी बच्ची ने हां में सिर हिलायी और घर चली गई। दूसरे दिन उस बच्ची ने अपनी मां को यह बात बताई कि दादा जी ये बातें कह रहे थे, काम पर जाने की तैयारी कर रहे बिरजू के बेटे के कानों में यह बात गई तो उसने बेटी से फिर दूबारा उन बातों को पूछ। और तब उसे याद आया कि वह तो जैसे पिता को भूल सा गया है और उसने सोचा आज मैं घाट से होते हुए काम पर जाऊंगा। ठीक उसी समय बिरजू की बहु के मायके से खबर आई कि उसकी मां बहुत बिमार हैं अब आनन फानन में बिरजू का बेटा अपनी पत्नी को लिवा कर ससुराल चला गया। वापिस जब शाम तक गांव लौटा तो उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसकी बहनें पहुंच गई थीं, उसी का इंतजार हो रहा था, सब सुबक रहे थे, बस वह छोटी बच्ची सबको देख रही थी जिसे आज सुबह ही दादा ने जीवन की सबसे बड़ी सीख दे दी थी।

कहानी का आशय ये है कि, ” आप चाहें जितने भी व्यस्त रहें, खुशहाल रहें, परेशान रहें लेकिन अपने बुजुर्ग हो रहे माता पिता के और घर के बुजुर्ग हो रहे अन्य परिजनों के सम्पर्क में रहें। यही उनके लिए सबसे बड़ी औषधि होगी, सबसे बड़ा सम्मान होगा। जय जयकार जारी रहेगी !

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