मदीना मियाँ – अच्छा सोमनाथ , एक बात बताओ तुम अपने खेत में जो पुतला बनाए हो उसके सिर पर पगड़ी , हाथों में लाठी , आंखों पर चश्मा यह सब तो ठीक है लेकिन यह कंधों पर बैग क्यों टांग देते हो यह बात मेरे समझ के परे है भाया ! 

सोमनाथ – देखो मदीना मियां , वैसे तो तुमको अपने काम से काम रखना चाहिए लेकिन बगलगीर होने के नाते तुमको बता ही देता हूं। बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि हमारी धरती मां तो अनाज के रूप में हमें बहुत कुछ देती ही है लेकिन आसमान भी हमें बहुत कुछ देता है अगर ऐसा हुआ तो मेरे खेत में खड़े पुतले के कंधे में टंगा हुआ बैग तो भर जाएगा ना भाया ??

(मदीना मियां और सोमनाथ एक साथ हंसने लगते हैं तभी वहां तुलसी , सोमनाथ के लिए खाना लेकर आती है उसने मदीना मियां और सोमनाथ की ओर देखा , खाना मचान के पास रखकर बोली )

तुलसी – अजी, भूख लगी होगी आओ खाना खा लो ।

सोमनाथ – हां जी , अभी आया वैसे भी पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।

(मदीना अपने खेतों की तरफ बढ़ गया , सोमनाथ पालथी मारकर खाना खा रहा था।) 

तुलसी – इस मदीने से जरा सावधान ! 

सोमनाथ – तुम चिंता ना करो , हमारे राज कोई और नहीं जान सकता , वैसे भी आज पूरी रात मैं जागने वाला हूँ । आज तो मैं उस चिड़िया को पकड़ कर के खजाने का पता लगा कर ही रहूंगा ।

तुलसी –  अपने साथ राघव को भी लिवा लेना , वह शाम को तुम्हारा खाना भी लेकर आ जाएगा ।

सोमनाथ – हां ठीक है ।

(सच कहा जाए तो सोमनाथ के पास बहुत छोटा सा खेत था जिसमें उसने मक्का बो रखा था । नहर का पानी मिल जाने से उसके छोटे खेत में भी सारी फासलें हो जाया करती थी लेकिन मकई के सीजन में सोमनाथ को एक बहुत बड़ा लाभ होता था जिसे वह किसी से बताना नहीं चाहता था ।दरअसल मकई की जैसे ही बालियाँ लग जाती थीं , वैसे ही आधी रात को उसके खेत में एक सुनहरी चिड़िया आती थी। वह मकई के कुछ दाने मात्रा खाती थी लेकिन बदले में सोमनाथ के खेत में खड़े चिड़ियों को उड़ाने वाले पुतले के कंधे पर टंगे बैग में वह सोने का एक दाना पहले रख देती थी तब जाकर वह मकई के दाने चुगती थी। इस तरह सोमनाथ के पास बहुत सारे सोने के छोटे-छोटे दाने हो जाया करते थे जिन्हें बेचकर वह अच्छा खासा मुनाफा कमाया करता था।)

(अब शाम ढल चुकी थी तभी उसका बेटा राघव हाथों में एक लठ लिए और दो बड़ी बड़ी बोरियां लिए साथ में खाने का झोला लिए वहां पहुंचा ।)

राघव – पिताजी , आप खाना खा लीजिए तब तक मैं खेतों से टहल कर आता हूं।

सोमनाथ – ठीक है जाओ,  तब तक मैं खाना खा लेता हूं।

(राघव खेतों में टहलने लगा और सोमनाथ खाना खाने लगा , अब रात ढल चुकी थी । दोनों बाप – बेटे मचान पर बैठे निगरानी कर रहे थे ।राघव बैठे-बैठे उघने लगा , तभी खेतों में तनिक हलचल हुई।)

सोमनाथ –  राघव – राघव ! उठो देखो शायद चिड़िया आ चुकी है ।

राघव – अच्छा ठीक है पिताजी , चलिए चलते हैं ।

(चांदनी रात थी जिसमें वह सुनहरी चिड़िया दूर से ही चमक रही थी , यह दोनों बाप बेटे दबे पांव उसके करीब पहुंचे । सोमनाथ ने उसके ऊपर जाल फेंका और राघव ने उसे दबोच लिया ।)

चिड़िया – यह तुम लोग क्या कर रहे हो ? 

मैं तो तुम्हारे मकई के दानें के बदले बहुमूल्य सोने के दाने तुम्हें देती हूं।

राघव – लेकिन उससे हमारा बहुत ज्यादा फायदा तो नहीं हो रहा है।

सोमनाथ – इसलिए हमने तय किया है कि हम पता लगाएंगे कि तुम कहां रहती हो ? तुम्हारा खजाना कहां है ? हमें वह पूरा खजाना चाहिए जिससे कि हम बड़े अमीर बन सकें ।

चिड़िया – ऐसा मत करो वरना जो मिल रहा है उससे भी हाथ धो बैठोगे ।

सोमनाथ –  क्या मतलब है तुम्हारा ? चिड़िया रानी !

राघव चिल्लाया –  देखो हमें सच-सच बताओ ।

(चिड़िया ने उन दोनों को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने , हार मानकर चिड़िया ने कहा चलो मेरे साथ वह एक पहाड़ के किनारे एक गुफा के पास दोनों बाप बेटी को ले गई।)

चिड़िया – देखो यही मेरी सोने की खदान है , मैं इसके अंदर रहती हूं ।

अंदर बहुत सारा सोना है लेकिन तुम लोग अपना नुकसान कर लोगे ।

   अतः जो मिल रहा है उसी में तसल्ली करो।

( उन्होंने चिड़िया की एक न सुनी।)

सोमनाथ – राघव , अपने साथ जो बड़ी बोरियां लाए हो चलो उसे भरते हैं।

राघव – जी पिताजी 

(दोनों गुफा के भीतर गए उनकी आंखें चौंधिया गईं, दोनों अपने साथ लाई बोरियों में सोना भरने लगे। चिड़िया चुपचाप यह सब देखती रही दोनों सोना लेकर अपने घर पहुंचे । तुलसी उनकी राह जोह रही थी और बैठे-बैठे उंघ भी रही थी , जब यह लोग पहुंचे तो वह बहुत खुश हो गई।)

तुलसी – अरे वाह ! 

हमारी तो किस्मत ही खुल गई ! सारा खजाना एक साथ मिल गया ।

सोमनाथ – अरे पगली यह तो कुछ भी नहीं है समझो सागर से दो लोटा जल निकाल लाए हैं !

तुलसी – कितना खजाना है वहां ??

राघव – मां समझो खजाने की खदान मिल गई है , हम लोग झूठे इतने दिनों तक सोने के बैग पाकर खुश हुआ करते थे । अब हम लोग सबसे अमीर बन जाएंगे।

तुलसी – सोने की खदान ! तब तो मेरे मायके वाले भी अमीर बन जाएंगे …मेरा पूरा…

(सोमनाथ बीच में उसे टोकते हुए बोला)

सोमनाथ – हां पूरे खानदान को ही खदान में लगा दो।

तुलसी – नहीं मैं तुम्हारे भाई और उस मदीना मियां को तो बिल्कुल एक दाना भी नहीं दूंगी।

राघव चिल्लाया – आप दोनों चुप रहो ! यह किसी को भी नहीं दिया जाएगा ।ये पूरी जिंदगी हम लोगों के ही बस काम आएगा । मेरी शादी होगी , बच्चे होंगे , तो मेरे बच्चे भी इसका लाभ लेंगे ॥

(तीनों की खुशी का ठिकाना न था , सुबह हो गई अब इनके हाव – भाव सब बदलने लगे थे , वह अब खेतों पर जाना बंद कर दिए । गांव में शेखी बघारना , फालतू खर्च करना …मारे घमंड के किसी से भी ठीक से बात ना करना आदि शुरू हो गया था । गांव के लोगों की आंखें चौंधिया गई थीं , गांव का चौकीदार दीनानाथ एक दिन रास्ते में खड़ा सवारी जोह रहा था तभी वहाँ से राघव अपनी नई कार लिये जा रहा था।) 

दीनानाथ चौकीदार – राघव बेटा, नई मोटरकार !

बहुत खूब मुझे कोतवाली तक लेते चलोगे क्या ?

राघव – यह लो 10 रूपये , कोई ऑटो पकड़ लो !

मेरी गाड़ी गंदी हो जाएगी तुम्हारे बैठने से।

(यह बात चौकीदार को बहुत नागवार गुजरी , उसने कोतवाली जाकर कोतवाल से सारी घटना बताइए ।कोतवाल ने सादी वर्दी में जाकर कुछ एक महिला पुलिस सिपाहियों को राघव  व उसके परिवार के अमीर बनने की पूरी सच्चाई का पता लगाने की जिम्मेदारी दे दिया। राघव रोज शराब आदि पीने लगा था। साथ ही तमाम व्यसनों में उलझ गया । एक दिन वह बहुत अधिक मदिरापान करके अपनी कार से घर लौट रहा था। अधिक शराब पीने के कारण उससे ठीक से कार चलाई भी नहीं जा रही थी।वह अपनी कार को एक पेड़ पर दे मारा , जब उसकी आंख खुली तो वह अस्पताल में था।)

राघव – मैं कहां हूं ?

नर्स – लेटे रहो ! तुम अस्पताल में हो , तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है।

(वह आंखें खोलकर इधर-उधर देखने लगा , उसके मां – बाप , पुलिस कोतवाल सभी सामने खड़े थे ।)

कोतवाल – तुम शराब पीकर गाड़ी चलाने की सजा जानते हो ??

सोमनाथ – अरे साहब बच्चा है , गलती हो गई । आप चिंता ना करें मैं आपको खुश करके ही यहां से भेजूंगा ।

कोतवाल – सिपाहियों , तुम लोग इसका पूरा बयान दर्ज कर लो । 

(कोतवाल अब नर्स को इशारा करता है , वह इशारे को देखकर सिर हिलाती है।)

कोतवाल –  सोमनाथ , तुम कोतवाली पर आकर मिलो।

(कोतवाल वहां से चला जाता है सोमनाथ की पत्नी तुलसी घबराई हुई थी वह सोमनाथ से कहती है।)

तुलसी – अजी , ये कोतवाल तो बहुत खड़ूस और सख्त मिजाज लगता है । इसे कहीं हम पर संका तो नहीं हो गई है ? 

सोमनाथ – मैं कितनी बार समझाता रहा कि थोड़ा हिसाब से पैसे खर्च करो लेकिन तुम मां बेटे को तो तसल्ली ही नहीं थी ।

तुलसी – ठीक है चलो घर पर तुम्हें बताती हूं।

(सोमनाथ चुप हो गया , वहां खड़ी नर्स राघव को दवा देने के बहाने सब सुन रही थी ।) 

(अब सोमनाथ और तुलसी अपने घर पर बात करते हैं।)

तुलसी – तुम दीनानाथ चौकीदार को कुछ खिला-पिला कर , उस कोतवाल को कुछ सोने के टुकड़े दे दो बात खत्म हो जाएगी।

सोमनाथ – अरे भाग्यवान !तुम पागल हो गई हो क्या ?उसे मोटे कोतवाल को सोना देना मतलब अपने हाथों में हथकड़ी लगवाना होगा , हां मैं उसे कुछ पैसे खिलाने की कोशिश करूंगा ।

तुलसी – अच्छा अब मैं समझी , वह पैसे खाता है इसलिए इतना मोटा हो गया है ! तुम भी कल से पैसे खाओ और खा – पी कर मोटे हो जाओ।

सोमनाथ – अरे मैं रिश्वत खिलाने की बात कर रहा हूं।पैसे खाये नहीं जाते , महारानी ! यह एक तरह की कहावत है बस !

(दीनानाथ चौकीदार के साथ सोमनाथ पुलिस चौकी जा रहा है , रास्ते में चलते-चलते बात करता है।)

सोमनाथ – दीना भाई , कोतवाल साहब बड़े सख्त मिजाज मालूम पड़ते हैं !

दीनानाथ – हां भैया ,

कोतवाल साहब बड़े सख्त मीजाज हैं , चोर बदमाश तो उनसे थर-थर कांपते हैं ।झूठ से उनको सख्त नफरत है जो कुछ पूछें सब सही-सही जो बता दिया वह तो बच गया वरना …..

सोमनाथ – अच्छा ठीक है , ठीक है ! यह बताओ कुछ खाते पीते हैं कि नहीं ?

दीनानाथ – खाते हैं ना ! मूली – टमाटर का सलाद !गाजर का हलवा !

पूड़ी और कचौड़ी तो बाजार से मांगते ही हैं ! 

राबड़ी उनको बहुत पसंद है….

सोमनाथ – अरे मेरा मतलब वह नहीं है , मेरा मतलब है कि कुछ रिश्वत खाते हैं कि नहीं ??

दीनानाथ – अच्छा , वैसे तो उनको शुगर है लेकिन मैं उनसे पूछ कर बताऊंगा।

सोमनाथ – भैया तुम रहने ही दो , मैं खुद ही बात कर लूंगा।

(दोनों थाने पहुंच गए , कोतवाल अपनी कुर्सी पर बैठा मिठाइयां खा रहा था सामने एक मोटी सी महिला बैठी थी , उधर लॉकअप में एक चोर को कुछ पुलिस के जवान लाठियों से पीट रहे थे।)

कोतवाल लड्डू खाते हुए -अरे दीनानाथ , आओ आओ !तुम्हारे गांव में क्या चल रहा है ? तुम्हारी चौकीदारी ठीक से चल रही है कि नहीं ? 

दीनानाथ – साहब , मेरे गांव में बहुत शांति है ! सब ठीक है । आपकी कृपा से ॥

कोतवाल – लो एक शान्ति यहाँ भी बैठी हैं , इनका नाम भी शांति है ! 

लो मिठाईयां खाओ यह बहन जी ही लाई हैं , इनका पर्स चोरी हुआ था जो मिल गया और चोर भी रंगे हाथों पकड़ा गया है , इसलिए खुशी के मारे यह लड्डू लाई हैं। लो खाओ !

(कोतवाल मिठाई का डब्बा दीनानाथ की ओर सरकाता हुआ कुर्सी से उठता है और हाथ धोने अंदर कमरे में चला जाता है , उधर दीनानाथ डब्बे में हाथ डालता है जो खाली हो चुका है , वह मुस्कुराता है मन ही मन सोचता है।)

दीनानाथ – दूसरा कोई क्या खाएगा साहब, जब आपसे बचेगा तब तो किसी और को मिलेगा भला ।

(अब जब कोतवाल हाथ धोने अंदर चला गया है तो दीनानाथ उस महिला की ओर देखकर पूछता है।)

दीनानाथ – प्रसाद लाई थीं क्या बहन जी ? 

शान्ति – हां जी भैया , पूरे सवा किलो लड्डू हनुमान जी को चढ़ाने के लिए लाई थी लेकिन यह सब बोले हम भी तो हनुमान जी के भक्त हैं !

दीनानाथ – मैं समझ गया बहन जी । एक बात और पुछूं आपसे ?

शांति – हां जी ! पूछो ।

दीनानाथ – आप इतनी तंदुरुस्त हैं , फिर ये दुबला – पतला आदमी आपका पर्स छीनकर कैसे भाग लिया ?

शांति – अरे नहीं भाई साहब , पर्स तो किसी और ने छीना था , यह तो मेरा पति है। यह मुझे डांट रहा था तो मैं इसकी भी रपट लिख दी

(सोमनाथ और दीनानाथ दोनों चौंक कर उस शान्ति नाम की अशान्त महिला को और उस मजबूर चोर , मतलब उसके लाचार पति को देखने लगते हैं।)

सोमनाथ – फिर क्या हुआ बहन जी ? 

शान्ति –  कोतवाल साहब ने कहा आपका पर्स तो मिल गया है लेकिन चोर नहीं पकड़ा गया इसलिए हम सोच रहे हैं कि पर्स चोरी के इल्जाम में आपके पति को ही चालान कर दिया जाए ! 

(दीनानाथ और सोमनाथ एक दूजे का मुंह देखने लगते हैं, तभी अंदर तौलिया से हाथ पोंछता हुआ कोतवाल दीनानाथ को आवाज देता है।)

कोतवाल – दीनानाथ , अंदर आओ ।

दीनानाथ – जी साहब ! 

(कहते हुए दीनानाथ उसके कमरे में दाखिल होता है।)

कोतवाल – यह जो सोमनाथ है बहुत मोटा आसामी लगता है । इससे कुछ मोटा नजराना मिलेगा कि नहीं ?

दीनानाथ – जी साहब , वह तो बहुत डरा और घबराया हुआ है आपसे बात करना चाहता है।

कोतवाल – उसको अंदर भेजो ।

(दीनानाथ बाहर जाता है और सोमनाथ को अंदर भेजता है।)

कोतवाल – हां तो सोमनाथ, तुम्हारे बेटे ने जिस गाय को टक्कर मारा था वह मर गई है उसके मालिक ने तुम पर और तुम्हारे बेटे पर मामला दर्ज करने का अपील किया है ।

सोमनाथ – लेकिन साहब , वह तो पेड़ से टकराया था गाय से नहीं !

कोतवाल –  तुम थे वहां पर ? 

सोमनाथ – नहीं साहब !

कोतवाल – तो तुम कैसे जानते हो कि वह पेड़ से टकराया था कि दीवाल से ?अच्छा हुआ कि गाय से टकराया , हाथी से नहीं टकराया …वरना…!

सोमनाथ – मैं समझ गया साहब ! अब मुझे क्या करना पड़ेगा ??

कोतवाल – पूरे 10 लाख रुपए का इंतजाम करो वरना तुम्हारा बेटा और तुम जेल जाओगे।

(बड़े दुखी मन से सोमनाथ अपने घर को लौट लिया , बारिश होने लगी , वह भीगता हुआ वापिस आया अपने घर पर। चिंता में डूबा हुआ अपने बिस्तर पर लेट गया । वह एक टक छत को निहार रहा था और अपनी करनी पर पछता रहा था शायद ! उधर अस्पताल से नर्स ने कोतवाल को फोन किया।)

नर्स – हां सर , एक खबर है !राघव नींद में बड़बड़ा रहा था। खदान …सोने…सोने की खदान… 

कोतवाल – मैंने तुम्हें इसीलिए तो उसके पास सादे वर्दी में , मेरा मतलब है की नर्स के ड्रेस में ड्यूटी पर लगवाई है कि तुम उसपर ठीक से नजर रख सको।

नर्स – यस सर ! मैं और भी कुछ राज उससे उगलवाने की कोशिश करती हूं।

कोतवाल – ठीक है मैं और भी तरीके अपनाता हूं।

(फोन रख देता है , अगली सुबह दो लोग जौहरी बनाकर सोमनाथ के घर पहुंचते हैं सोमनाथ के यहां जाकर डोरबेल बजाते हैं, सोमनाथ की पत्नी तुलसी दरवाजा खोलती है । एक जौहरी तुलसी से कहता है।)

एक जौहरी – सोमनाथ जी हैं ?

तुलसी – जी वह तो बाजार गए हैं , सोना बेचने !

दूसरा जौहरी – क्या ??

तुलसी -मेरा मतलब है , सोना खरीदने।

पहला जौहरी – अरे तो हमसे खरीद लीजिए , हम भी तो सोना खरीदने और बेचने का काम करते हैं।

           तुलसी सोचने लगती है कि यह तो अच्छा मौका है , घर में बहुत सारा सोना पड़ा हुआ है और मेरा पति भी नहीं है । क्यों ना कुछ सोना मैं बेच दूं और ढेर सारे पैसे चोरी से अपने भी पास रख लूं ! तुलसी उन दोनों को अंदर बुलाती है , कुछ सोना उन्हें लाकर देती है , वह तुलसी को पैसे देते हैं और चले जाते हैं । तुलसी खुश होती है , वह कोतवाल को जाकर सारी बात बताते हैं , सोना दिखाते हैं , वह तुरंत सोमनाथ और उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर थाने लाने को कहता है , शख्ति से पूछताछ करता है , वह खदान की बात बता देते हैं।उन दोनों को जेल हो जाती है। राघव को भी नर्स हॉस्पिटल में हथकड़ी पहना देती है उधर उनकी बदमाशियों और लापरवाहियों से सोमनाथ की खेती खत्म हो चली है , वह पुतला जो खेतों में खड़ा किया गया था उसकी भी हालत जर्जर हो चुकी है जबकि वह बैग अभी भी उसके कंधों में टंगा हुआ है , जिसे देखकर बगल के खेत वाले मदीना मियाँ को लगता है कि क्यों ना आज की रात उस बैग को लाकर वह अपने पुतले के कंधे में टांग दे जैसे ही वह बैग को उतारता है उसमें से सोने के तमाम दाने गिरकर चमकने लगते हैं वह उन्हें उठाता है , अपने खेतों में लेकर जाता है रखता है दूसरे दिन सुबह उस बैग को अपने खेतों में खड़े पुतले के कंधे पर लटका देता है। अभी भी वह चिड़िया आती है , अब वह मदीना मियाँ के खेतों में मकई की बालियां चुगती है।बदले में एक सोने का दाना रोज देती है । मदीना का परिवार बहुत खुश है , सोने की खदान पर सरकार का कब्जा हो चुका है लेकिन चिड़िया अपना काम करती रहती है ! सोने का बैग भरती रहती है ! मदीना को ऊपर वाला जो दे रहा है , उसमें वह बहुत खुश रहता है !

                                                         “समाप्त”

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